शाबर मंत्र साधना विधि की क्या है ? भाग- 2
शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मन्त्र
...................शाबर मंत्रो को जगाने का पर्याय
अगर बहोत कोशिश करने पर मंत्र जागृत नहीं हो रहे हो तो इस साधना को करके कोई भी साबर मंत्र जग सकते हो आप इस साधना को कर इसे सार्थक करे (अगर फिर नहीं हुआ तो साबर कल्प्सिद्धि से तो होना ही होना है यह हमारा दावा है ( कल्प्सिद्धि एक विशेष क्रिया है )
मन्त्रः-
ॐ इक ओंकार, सत नाम करता पुरुष निर्मै
निर्वैर अकाल मूर्ति अजूनि सैभं गुर प्रसादि जप आदि सच, जुगादि सच है भी सच, नानक होसी भी सच -
मन की जै जहाँ लागे अख, तहाँ-तहाँ
सत नाम की रख ।
चिन्तामणि कल्पतरु आए
कामधेनु को संग ले आए,
आए आप कुबेर भण्डारी साथ
लक्ष्मी आज्ञाकारी,
बारां ऋद्धां और नौ निधि
वरुण देव ले आए ।
प्रसिद्ध सत-गुरु पूर्ण कियो स्वार्थ, आए बैठे बिच पञ्ज पदार्थ ।
ढाकन गगन, पृथ्वी का बासन, रहे अडोल न डोले आसन,
राखे ब्रह्मा-विष्णु-महेश, काली-भैरों-हनु-गणेश ।
सूर्य-चन्द्र भए प्रवेश, तेंतीस करोड़ देव इन्द्रेश ।
सिद्ध चौरासी और नौ नाथ, बावन वीर यति छह साथ ।
राखा हुआ आप निरंकार, थुड़ो गई भाग समुन्द्रों पार ।
अटुट भण्डार, अखुट अपार ।
खात-खरचत, कछु
होत नहीं पार ।
किसी प्रकार नहीं होवत ऊना
।
देव दवावत दून चहूना ।
गुर की झोली, मेरे हाथ ।
गुरु-बचनी पञ्ज तत, बेअन्त-बेअन्त-बेअन्त भण्डार ।
जिनकी पैज रखी करतार, नानक गुरु पूरे नमस्कार ।
अन्नपूर्णा भई दयाल, नानक कुदरत नदर
निहाल ।
ऐ जप करने पुरुष का सच, नानक किया बखान,
जगत उद्धारण कारने धुरों होआ फरमान ।
अमृत-वेला सच नाम जप करिए ।
कर स्नान जो हित चित्त कर जप को पढ़े, सो
दरगह पावे मान ।
जन्म-मरण-भौ काटिए, जो प्रभ संग लावे ध्यान ।
जो मनसा मन में करे, दास नानक दीजे दान ।।”..
भक्तों को साधना काल में
निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है:-
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सर्वश्रेष्ट तो यह है की
आप गुरु खोजें और उससे मंत्र प्राप्त करें.
साधना काल में वाणी का
असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वचन आदि का त्याग करें। मौन
रहने की कोशिश करें।
निरंतर मंत्र जप अथवा इष्ट
देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है।
जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति मन में पूर्ण
आस्था रखें।
मंत्र-साधना के प्रति
दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें।
साधना-स्थल के प्रति दृढ़
इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी
है।
उपवास में दूध-फल आदि का
सात्विक भोजन लिया जाए।
श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म
व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है।
साधना काल में भूमि शयन
ही करना चाहि
शाबर मंत्र साधना में गुरु
की आवश्यकता:-
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शाबर मंत्र साधना के लिए
गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
गुरु साधना से उठने वाली
उर्जा को नियंत्रित और संतुलित करता है जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
मंत्र का एक पुरस्चरण
यानि 1,25,000
जाप कर लेना चाहिए.
इसके अलावा हनुमान चालीसा
का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
मन्त्र का विधान क्या है:-
मैं यंहा ये स्पष्ट कर
देना चाहता हूँ की दिये गये शाबर मंत्र मन्त्र बिल्कुल निर्दोष है . कोई भी स्त्री या पुरुष इन
मंत्रों का केवल सुबह शाम जाप करके लाभ ले सकता है . जैसे आप सुबह शाम पूजा करते
हो वैसे ही बस जाप शाबर मंत्र अपने आप सिद्ध होते है, इन मंत्रों का बस थोड़ा सा
जप करना पड़ता है। ओर ये बहोत ज्यादा प्रभाव दिखते है। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होताहै ओरकिसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं है ओर ये कितना भी शक्तिशाली
मंत्र हो उसको आराम
से काट सकते है।
गंगाजल में अमृत देखाई
नहीं देता, सती
का तेज देखाई नहीं देता, जति का सवरूप देखाई नहीं देता, पत्थर में भगवान् देखाई नहीं देता, ठीक उसी
परकार शाबर मन्त्रों कि अदभूत शक्ति दिखाई नहीं देती। परन्तु प्रयोग कर और आज़मा कर
देखिये - दुनिया को हिला कर रख दे ऐसी शक्ति इसमें समाई हुई है -
उच्चारण की अशुद्धता की
संभावना और चरित्र की अपवित्रता के कारण कलियुग में वैदिक मंत्र जल्दी सिद्ध नहीं
होते। ऐसे में लोक कल्याण और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सरल तथा सिद्धिदायक शाबर
मंत्रों की रचना गुरु गोरखनाथ आदि योगियों ने की थी। शाबर मंत्रों की प्रशंसा करते
हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- ‘अनमलि आखर अरथ न जापू। शाबर सिद्ध महेश प्रतापू।।’भाइयो बहनों साबरमन्त्रों के चमत्कार से आप सब अपरिचित तो हैं नहीं, अनेक भाइयोबह्नों ने इसे किया भी है और रिजल्ट भी देखे हैं. हमने भीब्लॉग के माध्यम से दिया है परन्तु जो दैनकजीवन मेंअति उपयोगीहोने के साथ ही अति आवश्यक है..... साबरमन्त्र सीधे असाधारण शक्ति और चमत्कार भी भरा हुआ है, भगवान गोरखनाथके समय से इन मन्त्रों की प्रसिद्धि हुई और कलियुग में तो ये मन्त्र अत्यधिक चमत्कारीऔर प्रभावशाली हैं, और तुरंत फल देने वाले हैं ...... नकोई साधना सामग्री न कोई विशेस विधान, बस एक विशिष्ट समय में जप ही करनाहै......
सबसे बात है कि इन साधनाओ में न तो विशेस विधि विधान की आवश्यकता है और नही किसी कर्मकांड की, इन साधना कि विधि सरल होने के साथ शीघ्र फलदायी भीहै..... अतः किसी भी वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं..... गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः
प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही
किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या
साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.
जब प्राचीन काल के
ग्रंथों में उल्लेखित शास्त्रोक्त मंत्रों का दुरूपयोग होने लगा तब महर्षि
विश्वामित्र के द्वारा शास्त्रोक्त मंत्रों को श्रापित तथा किलीत कर दिया गया तब
से शास्त्रोक्त मंत्र की साधना तथा प्रयोग से सामान्य जन वंचित होने लगे तथा विशेष
गुरू कृपा से प्राप्त मंत्र ही साधकों के लिए फलदायी होते थे। तथा अनेकों प्रकार
के कठिनाईयों के बावजूद सिद्धीयाँ प्राप्त होती थी तथा सामान्य साधक शास्त्रोक्त
मंत्रों के प्रभाव से वंचित रह जाते थे। यह देखकर भगवान शंकर द्वारा कलयुग के
साधकों के हित को ध्यान में रखते हुए शाबर मंत्रों का निर्माण किया गया। उसके बाद
नवनाथ संप्रदायों के द्वारा शाबर मंत्र के प्रचलन को आगे बढ़ाया गया।
शाबर मंत्रों की उत्पत्ति
और रचना के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने
जिस समय अजुर्न के साथ किरत वेश में युद्ध किया था उसी समय आगम चर्चा के दौरान माता
पार्वती जी के प्रश्नों के उत्तर शिवजी ने दिये थे उन्ही भिन्न प्रदत मंत्रों को
बाद में शाबर मंत्र कहा गया।
उसके बाद जब कलयुग
प्रारंभ हो रहा था तब भगवान शंकर ने कलयुग के मनुष्यों के कल्याण की भावना को
ध्यान में रखते हुये नाथ पंथ की स्थापना करने का विचार किया तथा इस कार्य में
बह्म्र तथा विष्णु भी सहमत हो गये। भगवान शिव के इस विचार को क्रिया रूप में
परिवर्तित करने के लिए ही महासती अनुसुइया को दिये गये वरदान के कारण उन तीनों ने
अपने- अपने अंशद्वारा सती अनुसुइया के गर्भ से जन्म लिया ।
ब्रह्म के अंशरूप में चन्द्रमा
शिव के अंश रूप में दुर्वासा ऋषि और विष्णु को अंश रूप में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ।बाद मे भगवान दत्तात्रेय नाथ पंथ के आदि गुरू बने क्योंकि इनके अन्दर
ब्रहमा विष्णु और महेश तीनों देवताओं के अंश विद्यामान थे। मुख्यतः विष्णु का
अंशरूप होने से भगवान विष्णु के चैतिस अवतारों में दत्तात्रेय अवतारों की गणना होती है। फिर नवनाथों की उत्पति
हुई तथा भगवान दत्तात्रेय द्वारा नवनाथों को शिक्षा दिक्षा प्रदान किया गया
तथा योग विद्या, अस्त्र
विद्या, मंत्र, तप इत्यादि
विषयों में पारंगतता प्रदान की गई । इन नवनाथों के अन्दर उतनी क्षमता थी कि ये कुछ
ही पल में कोई भी कार्य कर सकते थे, इनके पास आकाश गमन
सिद्धि, पाताल गमन मृत संजीवनी विद्या परकाया प्रवेश
जैसी हजारों सिद्धियाँ थी उन्हीं नवनाथों के द्वारा शाबर मंत्रों का विस्तार किया
गया। बाद में शाबर मंत्रों को सामान्यतः ग्रामीण बोलचाल पर प्रयोग होन वाले
सामान्य भाषा में लिखा गया।
इसलिए यह मंत्र सरल तथा
तीव्र प्रभावी होता है। शाबर मंत्रों की खासियत यह है कि मंत्रों के आखिर में
मंत्र से संबंधित देवी देवताओं के आन अथवा कसम दिया जाता है। जिससे देवी-देवताओं
को कसम की मर्यादा रखने के लिए साधक के इच्छित कार्यां को पूरा करना पड़ता है। आगे
मैं कुछ शाबर मंत्रों के अलौकिक एवं दुर्लभ प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। जिससे
सामान्य साधक अथवा पाठक प्रयोग में लाकर लाभ उठा सकते हैं।
शाबर मंत्र प्रयोग विधि –
सभी शाबर मंत्रों को
सिद्ध करने से पहले शाबर मंत्र विधान द्वारा गुरू और गणेश की पूजा आराधना करनी
चाहिए। तत्पश्चात् शरीर रक्षा मंत्रों के द्वारा शरीर की सुरक्षा कर लेनी चाहिए।
गुरू स्थापना प्रयोग – सबसे पहले चारमुख का दिया
जलाकर निम्न मंत्र द्वारा गुरू का आह्वान करना चाहिए।
मंत्र –
गुरू दिन गुरू बाती, गुरू सहे सारी राती, वास्तीक दियना,
बार के गुरू के उतारां
आरती।
इस मंत्र का सात बार जाप
करें। फिर निम्न मंत्र द्वारा गुरू का ध्यान करना चाहिए। ध्यान मंत्र अपने शरीर को रक्षा :-
ध्यान मंत्र:-
गुरू सठ-गुरू सठ गुरू है
विर गुरू साहब सुमिरों बड़ी भाँत सिगीं टोरों बनकहों मननाऊँ करतार सकल गुरू की हरभजे धट्टा पकर उठ जाग।
चेत सम्भार श्री परहंस मेरे
गुरू की कृपा अपार।
इस मंत्र को 21 बार उच्चारण करना चाहिए।
फिर अपने शरीर को रक्षा मंत्रों द्वारा सुरक्षित कर लेना चाहिए।
सुरक्षा मंत्र 1 –
उत्तर बांधों, दक्षिण बांधों, बांधों मरी मसानी,
नजर-गुजर देह बांधों
रामदुहाई फेरों शब्द शाचा,
पिंड काचा फुरो मंत्र
ईश्वरों बाचा।
इस मंत्र को सात बार
पढ़कर हथेली में फूक मारकर सारे शरीर में फिरा लें ऐसा करने से साधक का शरीर बंध
जाता है और साधक सुरक्षित हो जाता है।
शरीर रक्षा मंत्र 2 –
नमों आदि आदेश गुरू के जय
हनुमान वीर महान करथों तोला प्रनाम,
भूत-प्रेत मरी-मशान भाग जाय
तोर सुन के नाम,
मोर शरीर के रक्षा करिबे
नही तो सिता भैया के सैया पर पग ला धरबे,
मोर फूके मोर गुरू के फुके
गुरू कौन गौर महादेव के फूके जा रे शरी
बँधा जा।
विधि – मंत्र को ग्यारह बार पढ़कर अपने चारों ओर एक घेरा बना ले इससे साधना में
सभी विघ्नों से साधक की रक्षा होती है। इसके बाद किसी भी साधना का प्रयोग करने के
लिए तैयार हो जाता है। फिर जो भी साधना या प्रयोग कर सकता है।
…………………………..आइये अपना ज्ञान बढाकर समाज कल्याण कर पुण्य कमाइए. –"" लेखक एवं संकलन कर्ता : पेपसिंह राठौड़ तोगावास
शरीर रक्षा मंत्र 2
ReplyDeleteसिता भैया हौं या सिता मैया
शरीर रक्षा मंत्र 2
ReplyDeleteसिता भैया हौं या सिता मैया
सर जितने भी शाबर मन्त्र है वो किलित है
ReplyDeleteओर उनकी किलन विधि दे