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तंत्र साधना, मंत्र साधना, यन्त्र साधना, योग साधना,हिंदू धर्म में हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ। मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं- तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना। तीनों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं। आओ जानते हैं साधना के तरीके और उनसे प्राप्त होने वाला लाभ...

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।

शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।

गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥

अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।

इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-

मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।

आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥

मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।

रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।

विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥

पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।

स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥

प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।

मंत्र साधना - मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। मंत्र साधनाभौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।

मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।

वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।

मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

यंत्र साधना सबसे सरल है। बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखें लोग तो अपने आप कार्य सफल होते जाएंगे। यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं।

यं‍त्र को दो प्रकार से बनाया जाता है- अंक द्वारा और मंत्र द्वारा। यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं। श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं।

इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनाई जाती हैं। इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है। इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है।

यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाए जाते हैं।

दिशा- प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं। धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं। इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है। सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है योग साधना। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है। इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है-

'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'

मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं।

योग साधना - द्वार अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है। योग एक ‍कठिन साधना है। इसका अभ्यास किसी गुरु के सानिध्य में रहकर ही किया जाता है। विभिन्न योगाचार्यों अनुसार अभ्यास के समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती हैं, जिससे हठ योग साधना में विघ्न उत्पन्न होता हैं। ये आदतें निम्न हैं:- अधिक आहार, अधिक प्रयास, दिखावा, नियम विरुद्ध, लोक-संपर्क तथा चंचलता।

1.अधिक आहार : अधिक आहार की आदत योग में बाधा उत्पन्न करती है। डटकर भोजन करने वाले आलस्य, निद्रा, मोटापा आदि के शिकार बन जाते हैं। यौगिक आहार नियम को जानकर ही आहार करें। आहार संयम होना आवश्यक है।

2.अधिक प्रयास : कुछ अभ्यास ठीक से नहीं हो पाते तब साधक जोर लगाकर अधिक प्रयास से अभ्यास को साधना चाहता है, यह आदत घातक है। शरीर और मन की क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपनी ओर से कभी अधिक प्रयास नहीं करना चाहिए।

3.दिखावापन : इसे योगाचार्य प्रजल्प भी कहते हैं। कुछ लोग अपने अभ्यासों के संबंध में लोगों के समक्ष बढ़ा-चढ़ाकर बखान करते हैं। बहुत से अपने अभ्यास की थोड़ी बहुत सफलता का प्रदर्शन भी करते हैं। यही दिखावेपन की आदत योगी को योग से दूर कर देती है। अतः जो भी अभ्यास करें, उसकी चर्चा, जहाँ तक हो सके दूसरों से खासकर अनधिकारी व्यक्तियों से कभी न करें।

4.नियम विरुद्ध : योग के नियम के विरुद्ध है मन से नियम बनाना, इसे नियमाग्रह कहते हैं। बहुत से लोग कुछ खास नियम बना लेते हैं और आग्रह रखते हैं कि उसी के अनुसार चलेंगे। एक अर्थ में यह ठीक है और ऐसा करना भी चाहिए। किन्तु कभी-कभी यह विघ्नकारक भी हो जाता है।

उदाहरणार्थ- जैसे खाने के नियम बना लेते हैं कि एक फल ही खाऊँगा या सप्ताह में तीन दिन ही खाऊँगा। अभ्यास के नियम कि स्नान के बाद ही अभ्यास करेंगे या सुबह ही करेंगे या किसी खास स्थान में ही करेंगे। बुखार होगा तब भी अभ्यास नहीं छोड़ेगे। इस तरह मनमाने नियम से शरीर और मन को कष्ट होता है जबकि योग कहता है कि मध्यम मार्ग का अनुसरण करो। नियम हो लेकिन सख्‍त न हो। नियमों में लचीलापन बना रहना चाहिए।

5.जन-संपर्क : योग का अभ्यास करने वाले को अधिक जन-संपर्क में नहीं रहना चाहिए। उसे बहस, वाद-विवाद, सांसारिक चर्चा से दूर रहना चाहिए। अधिक जन संपर्क या संग से खानपान की बुरी आदतें भी बनने लगती हैं। अतः जहाँ तक संभव हो लोगों से कम संपर्क रखें।

6.चंचलता : कभी यहाँ, कभी वहाँ, कभी कुछ, कभी कुछ, यह शरीर की चंचल प्रवृत्ति ठीक नहीं होती। शारीरिक चंचलता से मन की चंचलता या मन की चंचलता से शारीरिक चंचलता उत्पन्न होती है। अतः शरीर को भी स्थिर रखें, अधिक दौड़धूप न करें और मन को भी शांत व स्थिर रखें। अधिक इधर-उधर की न सोचें।

7.संकल्प और धैर्य : संकल्पवान और धैर्यशील व्यक्ति ही योग में सफल हो सकता। संकल्प और धैर्य के अभाव में योग ही नहीं किसी भी विद्या या कार्य में सफलता अर्जित नहीं की जा सकती। संकल्प और धैर्यशीलता से ही सभी तरह की बाधाओं को पार किया जा सकता है अत: संकल्प और धीरज का होना बहुत जरूरी है।

इस प्रकार उपर्युक्त यह सात विघ्नकारक तत्व हैं, जिनसे योगाभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है। सच्चा साधक इन विघ्नों से सदा दूर रहकर और अपनी आदतों में सुधार कर अपने योगाभ्यास को सफल बनाता है।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास

Sunday 13 July 2014

शाबर मंत्र साधना विधि की क्या है ? भाग- 2

शाबर मंत्र साधना विधि की क्या है भाग- 2

शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मन्त्र

...................शाबर मंत्रो को जगाने का पर्याय
अगर बहोत कोशिश करने पर मंत्र जागृत नहीं हो रहे हो तो इस साधना को करके कोई भी साबर मंत्र जग सकते हो आप इस साधना को कर इसे सार्थक करे (अगर फिर नहीं हुआ तो साबर कल्प्सिद्धि से तो होना ही होना है यह हमारा दावा है ( कल्प्सिद्धि एक विशेष क्रिया है )

मन्त्रः-
ॐ इक ओंकारसत नाम करता पुरुष निर्मै निर्वैर अकाल मूर्ति अजूनि सैभं गुर प्रसादि जप आदि सचजुगादि सच है भी सचनानक होसी भी सच -
मन की जै जहाँ लागे अखतहाँ-तहाँ सत नाम की रख ।
चिन्तामणि कल्पतरु आए कामधेनु को संग ले आए
आए आप कुबेर भण्डारी साथ लक्ष्मी आज्ञाकारी
बारां ऋद्धां और नौ निधि वरुण देव ले आए ।
प्रसिद्ध सत-गुरु पूर्ण कियो स्वार्थआए बैठे बिच पञ्ज पदार्थ ।
ढाकन गगनपृथ्वी का बासनरहे अडोल न डोले आसन
राखे ब्रह्मा-विष्णु-महेशकाली-भैरों-हनु-गणेश ।
सूर्य-चन्द्र भए प्रवेशतेंतीस करोड़ देव इन्द्रेश ।
सिद्ध चौरासी और नौ नाथबावन वीर यति छह साथ ।
राखा हुआ आप निरंकारथुड़ो गई भाग समुन्द्रों पार ।
अटुट भण्डारअखुट अपार ।
खात-खरचतकछु होत नहीं पार ।
किसी प्रकार नहीं होवत ऊना ।
देव दवावत दून चहूना ।
गुर की झोलीमेरे हाथ ।
गुरु-बचनी पञ्ज ततबेअन्त-बेअन्त-बेअन्त भण्डार ।
जिनकी पैज रखी करतारनानक गुरु पूरे नमस्कार ।
अन्नपूर्णा भई दयालनानक कुदरत नदर निहाल ।
ऐ जप करने पुरुष का सचनानक किया बखान,
जगत उद्धारण कारने धुरों होआ फरमान ।
अमृत-वेला सच नाम जप करिए ।
कर स्नान जो हित चित्त कर जप को पढ़ेसो दरगह पावे मान ।
जन्म-मरण-भौ काटिएजो प्रभ संग लावे ध्यान ।
जो मनसा मन में करेदास नानक दीजे दान ।।”..

भक्तों को साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है:-
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सर्वश्रेष्ट तो यह है की आप गुरु खोजें और उससे मंत्र प्राप्त करें.
साधना काल में वाणी का असंतुलनकटु-भाषणप्रलापमिथ्या वचन आदि का त्याग करें। मौन रहने की कोशिश करें।
निरंतर मंत्र जप अथवा इष्‍ट देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है।
जिसकी साधना की जा रही होउसके प्रति मन में पूर्ण आस्था रखें।
मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें।
साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थानसामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी है।
उपवास में दूध-फल आदि का सात्विक भोजन लिया जाए।
श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है।
साधना काल में भूमि शयन ही करना चाहि

शाबर मंत्र साधना में गुरु की आवश्यकता:-
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शाबर मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
गुरु साधना से उठने वाली उर्जा को नियंत्रित और संतुलित करता है जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
मंत्र का एक पुरस्चरण यानि 1,25,000 जाप कर लेना चाहिए.
इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.

मन्त्र का विधान क्या है:-
मैं यंहा ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की दिये गये शाबर मंत्र मन्त्र बिल्कुल निर्दोष है . कोई भी स्त्री या पुरुष इन मंत्रों का केवल सुबह शाम जाप करके लाभ ले सकता है . जैसे आप सुबह शाम पूजा करते हो वैसे ही बस जाप शाबर मंत्र अपने आप सिद्ध होते हैइन मंत्रों का बस थोड़ा सा
जप करना पड़ता है।  ओर ये बहोत ज्यादा प्रभाव दिखते है। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होताहै ओरकिसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं
 है ओर ये कितना भी शक्तिशाली मंत्र हो उसको आराम 
से काट सकते है। 

गंगाजल में अमृत देखाई नहीं देतासती का तेज देखाई नहीं देताजति का सवरूप देखाई नहीं देतापत्थर में भगवान् देखाई नहीं देताठीक उसी परकार शाबर मन्त्रों कि अदभूत शक्ति दिखाई नहीं देती। परन्तु प्रयोग कर और आज़मा कर देखिये - दुनिया को हिला कर रख दे ऐसी शक्ति इसमें समाई हुई है -

उच्चारण की अशुद्धता की संभावना और चरित्र की अपवित्रता के कारण कलियुग में वैदिक मंत्र जल्दी सिद्ध नहीं होते। ऐसे में लोक कल्याण और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सरल तथा सिद्धिदायक शाबर मंत्रों की रचना गुरु गोरखनाथ आदि योगियों ने की थी। शाबर मंत्रों की प्रशंसा करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- अनमलि आखर अरथ न जापू। शाबर सिद्ध महेश प्रतापू।।भाइयो बहनों साबरमन्त्रों के चमत्कार से आप सब अपरिचित तो हैं नहींअनेक भाइयोबह्नों ने इसे किया भी है और रिजल्ट भी देखे हैं.  हमने भीब्लॉग के माध्यम से दिया है परन्तु  जो दैनकजीवन मेंअति उपयोगीहोने के साथ ही अति आवश्यक है..... साबरमन्त्र सीधे असाधारण शक्ति और चमत्कार भी भरा हुआ हैभगवान गोरखनाथके समय से इन मन्त्रों की प्रसिद्धि हुई और कलियुग में तो ये मन्त्र अत्यधिक चमत्कारीऔर प्रभावशाली हैंऔर तुरंत फल देने वाले हैं ...... नकोई साधना सामग्री  कोई विशेस विधानबस एक विशिष्ट समय में जप ही करनाहै......

सबसे बात है कि इन साधनाओ में  तो विशेस विधि विधान की आवश्यकता है और नही किसी कर्मकांड कीइन साधना कि विधि सरल होने के साथ शीघ्र फलदायी भीहै..... अतः किसी भी वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं..... गुरु की आज्ञागुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजनऔर मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिएयही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.

जब प्राचीन काल के ग्रंथों में उल्लेखित शास्त्रोक्त मंत्रों का दुरूपयोग होने लगा तब महर्षि विश्वामित्र के द्वारा शास्त्रोक्त मंत्रों को श्रापित तथा किलीत कर दिया गया तब से शास्त्रोक्त मंत्र की साधना तथा प्रयोग से सामान्य जन वंचित होने लगे तथा विशेष गुरू कृपा से प्राप्त मंत्र ही साधकों के लिए फलदायी होते थे। तथा अनेकों प्रकार के कठिनाईयों के बावजूद सिद्धीयाँ प्राप्त होती थी तथा सामान्य साधक शास्त्रोक्त मंत्रों के प्रभाव से वंचित रह जाते थे। यह देखकर भगवान शंकर द्वारा कलयुग के साधकों के हित को ध्यान में रखते हुए शाबर मंत्रों का निर्माण किया गया। उसके बाद नवनाथ संप्रदायों के द्वारा शाबर मंत्र के प्रचलन को आगे बढ़ाया गया।

शाबर मंत्रों की उत्पत्ति और रचना के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने जिस समय अजुर्न के साथ किरत वेश में युद्ध किया था उसी समय आगम चर्चा के दौरान माता पार्वती जी के प्रश्नों के उत्तर शिवजी ने दिये थे उन्ही भिन्न प्रदत मंत्रों को बाद में शाबर मंत्र कहा गया।

उसके बाद जब कलयुग प्रारंभ हो रहा था तब भगवान शंकर ने कलयुग के मनुष्यों के कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुये नाथ पंथ की स्थापना करने का विचार किया तथा इस कार्य में बह्म्र तथा विष्णु भी सहमत हो गये। भगवान शिव के इस विचार को क्रिया रूप में परिवर्तित करने के लिए ही महासती अनुसुइया को दिये गये वरदान के कारण उन तीनों ने अपने- अपने अंशद्वारा सती अनुसुइया के गर्भ से जन्म लिया ।

ब्रह्म के अंशरूप में चन्द्रमा शिव के अंश रूप में दुर्वासा ऋषि और विष्णु को अंश रूप में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ।बाद मे भगवान दत्तात्रेय नाथ पंथ के आदि गुरू बने क्योंकि इनके अन्दर ब्रहमा विष्णु और महेश तीनों देवताओं के अंश विद्यामान थे। मुख्यतः विष्णु का अंशरूप होने से भगवान विष्णु के चैतिस अवतारों में दत्तात्रेय अवतारों की गणना होती है। फिर नवनाथों की उत्पति हुई तथा भगवान दत्तात्रेय द्वारा नवनाथों को शिक्षा दिक्षा प्रदान किया गया तथा योग विद्याअस्त्र विद्यामंत्रतप इत्यादि विषयों में पारंगतता प्रदान की गई । इन नवनाथों के अन्दर उतनी क्षमता थी कि ये कुछ ही पल में कोई भी कार्य कर सकते थेइनके पास आकाश गमन सिद्धिपाताल गमन मृत संजीवनी विद्या परकाया प्रवेश जैसी हजारों सिद्धियाँ थी उन्हीं नवनाथों के द्वारा शाबर मंत्रों का विस्तार किया गया। बाद में शाबर मंत्रों को सामान्यतः ग्रामीण बोलचाल पर प्रयोग होन वाले सामान्य भाषा में लिखा गया।

इसलिए यह मंत्र सरल तथा तीव्र प्रभावी होता है। शाबर मंत्रों की खासियत यह है कि मंत्रों के आखिर में मंत्र से संबंधित देवी देवताओं के आन अथवा कसम दिया जाता है। जिससे देवी-देवताओं को कसम की मर्यादा रखने के लिए साधक के इच्छित कार्यां को पूरा करना पड़ता है। आगे मैं कुछ शाबर मंत्रों के अलौकिक एवं दुर्लभ प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। जिससे सामान्य साधक अथवा पाठक प्रयोग में लाकर लाभ उठा सकते हैं।
शाबर मंत्र प्रयोग विधि  
सभी शाबर मंत्रों को सिद्ध करने से पहले शाबर मंत्र विधान द्वारा गुरू और गणेश की पूजा आराधना करनी चाहिए। तत्पश्चात् शरीर रक्षा मंत्रों के द्वारा शरीर की सुरक्षा कर लेनी चाहिए। गुरू स्थापना प्रयोग – सबसे पहले चारमुख का दिया जलाकर निम्न मंत्र द्वारा गुरू का आह्वान करना चाहिए।
मंत्र 
गुरू दिन गुरू बातीगुरू सहे सारी रातीवास्तीक दियना
बार के गुरू के उतारां आरती।

इस मंत्र का सात बार जाप करें। फिर निम्न मंत्र द्वारा गुरू का ध्यान करना चाहिए। ध्यान मंत्र अपने शरीर को रक्षा :-
ध्यान मंत्र:- 
गुरू सठ-गुरू सठ गुरू है विर गुरू साहब सुमिरों बड़ी भाँत सिगीं टोरों बनकहों मननाऊँ  करतार सकल गुरू की हरभजे धट्टा पकर उठ जाग।
चेत सम्भार श्री परहंस मेरे गुरू की कृपा अपार।    

इस मंत्र को 21 बार उच्चारण करना चाहिए। फिर अपने शरीर को रक्षा मंत्रों द्वारा सुरक्षित कर लेना चाहिए।
सुरक्षा मंत्र 1 – 
उत्तर बांधोंदक्षिण बांधोंबांधों मरी मसानी,             
नजर-गुजर देह बांधों रामदुहाई फेरों शब्द शाचा,
पिंड काचा फुरो मंत्र ईश्वरों बाचा।

इस मंत्र को सात बार पढ़कर हथेली में फूक मारकर सारे शरीर में फिरा लें ऐसा करने से साधक का शरीर बंध जाता है और साधक सुरक्षित हो जाता है।
शरीर रक्षा मंत्र 2 –
नमों आदि आदेश गुरू के जय हनुमान वीर महान करथों तोला प्रनाम,
भूत-प्रेत मरी-मशान भाग जाय तोर सुन के नाम,
मोर शरीर के रक्षा करिबे नही तो सिता भैया के सैया पर पग ला धरबे,
मोर फूके मोर गुरू के फुके गुरू कौन गौर महादेव के फूके जा रे शरी
बँधा जा।

विधि  मंत्र को ग्यारह बार पढ़कर अपने चारों ओर एक घेरा बना ले इससे साधना में सभी विघ्नों से साधक की रक्षा होती है। इसके बाद किसी भी साधना का प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाता है। फिर जो भी साधना या प्रयोग कर सकता है। 
 …………………………..आइये अपना ज्ञान बढाकर समाज कल्याण कर पुण्य कमाइए. –"" लेखक एवं संकलन कर्ता : पेपसिंह राठौड़ तोगावास



3 comments:

  1. शरीर रक्षा मंत्र 2
    सिता भैया हौं या सिता मैया

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  2. शरीर रक्षा मंत्र 2
    सिता भैया हौं या सिता मैया

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  3. सर जितने भी शाबर मन्त्र है वो किलित है
    ओर उनकी किलन विधि दे

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